हिंदू धर्मग्रंथों में माँ मातंगी को विद्या और ज्ञान की देवी माना गया है।
वह ब्रह्मांड की आदि शक्ति हैं और सृष्टि के सभी रूपों की प्रेरिका हैं। मातंगी अष्टकम् एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो माँ मातंगी की स्तुति और आराधना करता है। यह स्तोत्र आध्यात्मिक विकास, ज्ञान की प्राप्ति और भौतिक बाधाओं पर विजय प्राप्त करने में मदद करने के लिए जाना जाता है।
matangi ashtakam |
मातंगी अष्टकम् के श्लोक और उनका अर्थ:
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श्लोक 1:
माताङ्गीं सर्वविद्यानां तन्त्रेशीं तन्त्रधारिणीम् ।
सृष्टिस्थितिसंहारैककारणीमाद्यतन्वीं भजे ॥
अर्थ: सर्वविद्याओं की देवी, तंत्रों की स्वामिनी और उन्हें धारण करने वाली, सृष्टि, स्थिति और संहार का एकमात्र कारण, आदि शक्ति मातंगी को मैं नमन करता हूं। -
श्लोक 2:
तृणोपमवर्णाभां तन्वीं तिलपुष्पसमानविभ्राजिताम् ।
मुण्डमालाधरां पद्मासनां चतुर्भुजवरां भजे ॥
अर्थ: घास के समान रंग वाली, कमल की पंखुड़ियों के समान चमकदार, मुंडों की माला धारण करने वाली, कमल पर विराजमान, चार विशाल भुजाओं वाली देवी मातंगी को मैं नमन करता हूं। -
श्लोक 3:
पाशांकुशधरां शंखं वरदां स्वहस्ते धारयन्तीं च ।
श्रीविद्याराजराजेश्वरीं त्रयीं भजे ॥
अर्थ: पाश, अंकुश, शंख और वरदान अपने चार हाथों में धारण करने वाली, श्रीविद्या की राजराजेस्वरी, त्रिपुरा देवी को मैं नमन करता हूं। -
श्लोक 4:
ब्रह्माणी रुद्ररूपा च महेश्वरी च विष्णुरूपिणी ।
वागीश्वरी चन्द्ररूपा च भैरवी भ्रमररूपिणी ॥
अर्थ: ब्रह्माणी, रुद्ररूपा, महेश्वरी, विष्णुरूपिणी, वागीश्वरी, चन्द्ररूपा और भैरवी भ्रमररूपिणी के रूप में प्रकट होने वाली मातंगी को मैं नमन करता हूं। -
श्लोक 5:
त्रिलोकीमाता च त्रिपुरा त्रिवर्गदा त्रिपुरसुन्दरी ।
श्यामा तारिणी तारा च निगमागमविनोदिनी ॥
अर्थ: तीनों लोकों की माता, त्रिपुरा, त्रिवर्गदायिनी, त्रिपुरसुंदरी, श्यामा, तारिणी और तारा के रूप में विख्यात, निगम और आगमों में विहार करने वाली मातंगी को मैं नमन करता हूं। -
श्लोक 6:
कामेरूपे कमलाक्ष्ये कामाक्षि कामावषायिका ।
काली कालभैरवी काल्या या देवी सृष्टिकारणी ॥
अर्थ: कामेरूपा, कमलाक्षी, कामाक्षी, कामावशायिका, काली, कालभैरवी और काल्या नामों से प्रसिद्ध, सृष्टि की रचना करने वाली देवी मातंगी को मैं नमन करता हूं। -
श्लोक 7:
मायामहिषी महालक्ष्मीर्या वाग्देवी सरस्वती ।
तवैन्ये रूपाणि परमार्थवोदिनी भवन्ति ॥
अर्थ: मायामहिषी, महालक्ष्मी और वाग्देवी सरस्वती के रूप में भी प्रकट होने वाली, परमार्थ का उपदेश देने वाली मातंगी की अनगिनत रूप हैं। -
श्लोक 8:
माताङ्गि भगवति त्वं नो द्रविणं देहि यशो देहि ।
विद्यां देहि गुणां देहि पतिं देहि धनं देहि ॥
अर्थ: हे मातांगी, आप हमें धन, यश, विद्या, गुण, पति और धन प्रदान करें।
मातंगी अष्टकम् का पाठ करने के लाभ:
- मातंगी अष्टकम् का पाठ करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है और बुद्धि का विकास होता है।
- यह विद्या और कला में सफलता दिलाता है।
- यह भौतिक बाधाओं और शत्रुओं पर विजय दिलाता है।
- यह आध्यात्मिक विकास और आत्मज्ञान को बढ़ावा देता है।
- यह मनोकामनाओं की पूर्ति करता है और जीवन में सफलता दिलाता है।
मातंगी अष्टकम् का पाठ करने की विधि:
- पवित्र स्नान करें और अपने पूजा स्थल को शुद्ध करें।
- माँ मातंगी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- दीपक जलाएं और धूप अर्पित करें।
- मातांगी अष्टकम् के श्लोकों का पाठ करें।
- पाठ के बाद, माँ मातांगी से प्रार्थना करें और विनती करें।
- भोग अर्पित करें और प्रसाद ग्रहण करें।
निष्कर्ष:
मातंगी अष्टकम् माँ मातंगी की एक शक्तिशाली और प्रेरणादायक स्तुति है। यह स्तोत्र ज्ञान, विद्या और आध्यात्मिक विकास के पथ पर मार्गदर्शन करता है। मातंगी अष्टकम् का नियमित पाठ करने से साधकों को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही रूपों में बहुमूल्य लाभ प्राप्त होते हैं। यह एक ऐसा स्तोत्र है जो हर साधक को अपने जीवन में शामिल करना चाहिए जो ज्ञान, सफलता और आत्मज्ञान की तलाश में है।